नहाते वक्त पेशाब क्यों लगता है? क्या ऐसा करना स्वास्थ के लिए हानिकारक है ?
नहाते वक्त पेशाब : – नहाते वक्त पूरा शरीर ठंडे पानी में देर तक रहता है इसलिए मूत्राशय पर दबाव पडता है (सिकुड़ता है) और इस वजह से मूत्र तंत्र सक्रिय हो उठता है। इस समय पेशाब करने से मूत्राशय को राहत मिलती है।
नहाते वक्त पेशाब होता है लाभकारी
पेशाब में यूरिया होता है, अतः पैरों पर पेशाब करने से एथलीट फुट के रूप में जाना जाने वाले फंगल इंफेक्शन को रोकने में मदद मिल सकती है।
पीरियड्स में नहाते वक्त स्त्रियां गुनगुने पानी का इस्तेमाल कर रही हैं तो इस दौरान पेशाब करने से उनको क्रैंप या पीरियड्स के भयावह दर्द से राहत मिल सकती है। साथ यह ब्लीडिंग को स्मूथ बना सकता है। नहाने के साथ ये बेहतर तरीके से अंग की सफाई करता है।
2. अगर मल त्याग में बहुत जोर लगाना पड़े और मल भी थोड़ा-थोड़ा और सूखा आये, तो क्या करना चाहिए?
सबसे पहले जवाब दिया गया: अगर मल त्याग में बहुत जोर लगाना पड़े और मल भी थोड़ा थोड़ा और सूखा आये तो क्या करना चाहिए ?
कब्ज़ हो सकता है –
◆ आहार में बदलाव कीजिए
◆ नशीले पदार्थों का सेवन से बचें
◆ पानी पर्याप्त मात्रा में पीए
◆ फाइबर कब्ज को कम करने में बहुत लाभदायक है इसलिए जितना हो सके अधिक से अधकि फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ खाना चाहिए (जैसे – अंजीर, खजूर, बीन्स, ब्रॉकली, चिया बीज इति।)
सामान्य उपचार –
◆ रात को एक चमच्च शहद गुनगुने पानी के साथ पीए।
◆ दूध में साधित अंजीर/मुन्नका का सेवन भी कर सकतें हैं।
◆ एरंडी तेलं (आधा चमच्च) दूध में मिलाकर सेवन कर सकते हैं।(रेचक का कार्य करता है)
◆ त्रिफ़ला का प्रयोग कर सकतें हैं।
◆ कटि स्नान करें (sitz-bath)
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कटि-स्नान- इसके लिए एक विशेष प्रकार का कुर्सीनुमा टब (लोहा, फाइबर, ग्लास या प्लास्टिक) लेकर उसमें पानी भरकर रोगी को बिठा देते हैं। रोगी के पैर टब से बाहर एक पट्टे पर रखवा दिये जाते हैं। टब का पानी कमर से लेकर जांघों के बीच वाले भाग को डुबोकर रखता है। इस दौरान रोगी रोंयेदार तौलिये से नाभि, पेडू, नितम्ब तथा जांघों को पानी के अंदर रगड़ते हुए मालिश करे।
रोगी निर्बल हो तो पैरों को चौड़े मुंह के गर्म पानी के पात्र में रखवाये एवं गर्दन तक कम्बल या गर्म कपड़े से ढक दे। ठंडे पानी का तापमान 50 डिग्री फॉरेनहाइट से 70 डिग्री फॉरेनहाइट तक रखना चाहिए। प्रारंभ में सहने योग्य पानी रखे। थोड़ी देर बाद बर्फ का पानी डालकर पानी का तापमान कम करते जाय।
टब में पानी उतना ही रखे कि उसमें रोगी के बैठने पर नाभि तक आ जाये। कटि-स्नान से पूर्व तथा कटि-स्नान के दौरान शरीर का कोई अन्य अंग नहीं भीगना चाहिए। भोजन एवं कटि-स्नान के मध्य तथा कटि-स्नान एवं साधारण स्नान के मध्य एक घंटे का अंतर रखना आवश्यक है। कटि-स्नान रोगी की सहनशक्ति, स्थिति के अनुसार तीन मिनट से प्रारंभ करके बीस मिनट तक देना चाहिए।
कम ठंडे पानी का कटि-स्नान अधिक देर तक देने की अपेक्षा अधिक ठंडे पानी का कटि-स्नान थोड़ी देर तक देना ज्यादा लाभदायक होता है। ठंडे कटि-स्नान से पूर्व तािा बाद में सूखे तौलिये से घर्षण-स्नान करके शरीर को किंचित गर्म कर लेना चाहिए, जिससे ठंडे पानी का प्रतिकूल असर नहीं पड़े। तीव्र कमर-दर्द, निमोनिया, खांसी, अस्थमा (दमा), साइटिका, गर्भाशय-मूत्राशय-जननेन्द्रिय तथा आंत्र की तीव्र सूजन में कटि-स्नान वर्जित है।